भोपाल
प्रदेश में आजीवन कारावास के बंदियों को समयपूर्व रिहाई देने के लिए राज्य सरकार पॉलिसी बनाने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकार ने इस संबंध में दस राज्यों की नीति का अध्ययन किया है। इसमें से मध्यप्रदेश के हिसाब से जो सबसे उपयुक्त होगी उसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की स्वीकृति के बाद राज्य में लागू किया जाएगा।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को हाल ही में सभी राज्य सरकारों को कहा है कि वह अपने यहां लागू आजीवन कारावास की सजा से दंडित बंदियों की सजा में रियायत को लेकर देशभर में लागू नीतियों का अध्ययन कर उपयुक्त नीति लागू करे।
रेप-नरसंहार दोषियों को रियायत नहीं
सीआरपीसी की धारा 432 और 433 के तहत मध्यप्रदेश सरकार ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों को समय से पूर्व रिहाई देने की नीति तैयार करने के लिए दस राज्यों की इस संबंध में बनी नीति का अध्ययन कराया है। इसके तहत ऐसे कैदी जिनका जेल में बंद रहने के दौरान आचरण अच्छा होता है। जो ज्यादा वृद्ध या बीमार है उनकी सजा में राज्य सरकार छूट दे सकती है।
राज्य सरकार आजीवन कारावास को चौदह साल के बाद जुर्माने के रूप में कम कर सकती है। लेकिन इसमें बलात्कार, नरसंहार, राष्टÑदोह के बंदियों को कोई रियायत नहीं दी जाती है। सीबीआई, एनआईए जैसी केन्द्रीय एजेंसियों की विशेष कोर्ट से सजा पाए बंदियों को भी रिहाई नहीं दी जाती है। इसी तरह ऐसे बंदी जिनसे लोक शांति और कानून व्यवस्था को खतरा होता है राज्य सरकार उनकी रिहाई रोक सकती है।
इस तरह दी जाएगी छूट
राज्य सरकार जो नीति बना रही है उसमें हर कैदी के केस से जुड़े तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर यह तय किया जाएगा कि किन कैदियों को छूट दी जाए। इसके लिए संबंधित मंत्री, अधिकारी और जेल अधिकारी मिलकर यह तय करेंगे कि किस कैदी की सजा माफ की जाए और कितनी माफ की जाए। सजा माफी के लिए शर्ते भी लगाई जाती है। इसमें जिन बंदियों ने सोलह वर्ष की अपरिहार और बीस वर्ष की सपरिहार सजा पूरी की हो उन्हें प्रतिबंधित श्रेणी से बाहर रहने पर रिहाई के लिए उपयुक्त माना जाएगा।
कैदियों को हर माह सजा में छह दिन की छूट मिलती है। चाल चलन ठीक होंने पर सात दिन की छूट भी दी जाती है। छूट की अवधि घटाकर की गई गणना को अपरिहार और छूट की अवधि जोड़ कर सपरिहार सजा का आंकन किया जाएगएा।