भोपाल
आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रामकिशोर कावरे ने कहा है कि प्रदेश में जनजातीय क्षेत्रों के किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध करने के लिये औषधीय खेती के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिये देवारण्य योजना शुरू की गई है। योजना में किसानों को प्रशिक्षण दिये जाने की भी व्यवस्था है। राज्य मंत्री कावरे आज भोपाल के प्रशासन अकादमी में "औषधीय पौधों के उपयोग से मानव स्वास्थ्य सुरक्षा'' पर राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
राज्य मंत्री कावरे ने कहा कि आयुर्वेद का महत्व हम सभी को कोरोना महामारी के दौरान पता चला, जब एलोपैथी भी काम नहीं आई और आयुर्वेद से लोग स्वस्थ हुए। कोरोना महामारी में आयुर्वेदिक त्रिकटु चूर्ण एवं आरोग्य कसायाम का उपयोग करते हुए लोगों के मनोबल को बढ़ाया और उन्हें स्वस्थ किया। उन्होंने कहा कि हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिये औषधीय पौधों की पहचान और उसके उपयोग के बारे में जानकारी होना चाहिये। राज्य मंत्री कावरे ने कहा कि आयुर्वेद औषधियों की पैकेजिंग में और सुधार की आवश्यकता है। नई टेक्नालॉजी से पैकेजिंग में सुधार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आयुष विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों को निर्देशित किया गया है कि वे अपने निवास के परिसर में कम से कम 15 किस्म के औषधीय पौधे लगायें।
संगोष्ठी के संयोजक दिलीप कुमार ने विभिन्न सत्रों की जानकारी दी। प्रबंध संचालक लघु वनोपज संघ पुष्कर सिंह ने संगोष्ठी के तकनीकी-सत्रों के बारे में जानकारी दी। प्रमुख सचिव वन अशोक वर्णवाल और प्रधान मुख्य वन संरक्षक रमेश कुमार गुप्ता मौजूद थे। तकनीकी-सत्र में आरजीपीव्ही विश्वविद्यालय की डॉ. दीप्ति जैन, केन्द्रीय आयुर्वेद संस्थान मुम्बई के डॉ. आर. गोविंद रेड्डी ने हर्बल औषधि की गुणवत्ता और उसके पैरामीटर मापने की जानकारी दी। पुणे के डॉ. रविन्द्र धनेश्वर ने हर्बल औषधि के प्रमाणीकरण, दस्तावेजीकरण और मानकीकरण के बारे में बताया।
आयुर्वेद चिकित्सा केन्द्र के रूप में तेजी से उभरता मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश आयुर्वेद चिकित्सा केन्द्र के रूप में तेजी से उभर रहा है। राज्य में औषधीय पौधों की बहुतायत है और जैव-विविधता से समृद्ध है। जनजातीय बहुल क्षेत्रों में इन औषधीय महत्व की वनस्पति का पारम्परिक ज्ञान रखने वाली जनजातियाँ निवास करती हैं। आयुर्वेद के क्षेत्र में अनुसंधान एवं आयुर्वेद दवाओं के निर्माण और प्र-संस्करण के लिए भी मध्यप्रदेश ने विशिष्ट स्थान बनाया है। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन आयुर्वेद शिरोमणी आचार्य बालकृष्ण पंतजलि योग पीठ हरिद्वार की उपस्थिति में होगा।