जोहानसबर्ग
पाकिस्तान में बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए एक दक्षिण अफ्रीकी एनजीओ (NGO) ने मदद का हाथ बढ़ाया है। दक्षिण अफ्रीकी NGO Spiritual Chords पाकिस्तान में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को बांस से बने घर उपलब्ध कराकर मदद कर रहा है, जो लोगों को बाढ़ और भूकंप से बचा सकता है। NGO Spiritual Chords की संस्थापक सफीया मूसा ने कहा कि पाकिस्तान में बांस, चूने, मिट्टी और अन्य टिकाऊ सामग्रियों से बने घरों ने विनाशकारी बाढ़ का सामना किया है, जबकि मिट्टी की ईंटों से बने मकान नष्ट हो गए।
आपदा रोधी घर देने का फैसला
सफीया मूसा ने कहा, 'जब हमने पाकिस्तान में 2011 की बाढ़ के बाद सहायता देने का फैसला किया। मैं ग्रीन टिकाऊ घर के लिए बहुत उत्सुक थी। ईंटों की गुणवत्ता घटिया थी और मिट्टी की ईंटों के साथ बाढ़ और भूकंप के लिए घर लचीला नहीं थे। मैं लंबे समय तक के लिए समाधान पेश करना चाहती थी।' उन्होंने कहा, 'ढाई साल इस पर काम करने के बाद, मैंने पाकिस्तान की पहली महिला वास्तुकार यास्मीन लारी को फोन किया। उनसे एक ऐसा ढ़ांचा विकसित करने में मदद मांगी, जो प्रकृति की मार झेल सके और लोगों को बुनियादी आवास प्रदान करते समय विरोध न हो।'
पाकिस्तानी वास्तुकार की मदद
बता दें कि लाहौर में मुगल सम्राट अकबर के शीश महल को जीर्णोद्धार परियोजना पर काम करते हुए, यास्मीन लारी ने देखा कि सदियों पहले इसकी दीवारों पर इस्तेमाल किया गया प्लास्टर चूने, मिट्टी और अन्य टिकाऊ सामग्री से बना था। मूसा ने कहा, 'यास्मीन ने मिट्टी के इस मिश्रण के साथ बांस के साथ एक संरचना बनाई, जिसे देखकर खुशी मिलती और बहुत प्रबंधनीय है। बांस जीरो कार्बन उत्सर्जन पैदा करने वाला है और इसे तीन से पांच वर्षों में उगाया जा सकता है।'
चार साल में बने 57,000 घर
सफीया मूसा ने कहा कि इसका उपयोग करते हुए, हमने 2011 की बाढ़ के दो साल बाद गांवों में घर बनाना शुरू किया। उन्होंने कहा कि पहले घर बनने के बाद, हम हैंडपंप और कुओं के साथ पानी भी लाए। चार साल से कम समय में 57,000 ढ़ांचे बने, जिसे संयुक्त राष्ट्र विश्व आवास पुरस्कार मिला था। पाकिस्तान में बाढ़ की मार झेल रहे लोगों को मूसा ने कहा, 'हम उन्हें तंबू नहीं देते, हम उन्हें घर देते हैं।' देश में अब पाकिस्तानी सरकार और गैर सरकारी संगठन इन घरों की संख्या बढ़ाने के लिए Spiritual Chords के साथ सहयोग करना चाह रहे हैं। मूसा ने कहा कि इस आइडिया को अब कई देशों में अपनाया जा रहा है। इसके तहत शरणार्थियों की समस्या का भी समाधान किया जा सकता है।